नए राष्ट्र की पटकथा, यह महज़ एक मनोरंजक कविताओं की क़िताब भर ही नहीं है, बल्कि यह एक कोशिश है उन संवेदनाओं और दर्द को समेटने की जो हमारे आस पास की दुनिया में बिखरा पड़ा है, जिसे हम कभी देख पाते हैं तो कभी देख कर भी नज़र अंदाज़ कर देते हैं, यह कविताएं बस एक लेखक की सोच ही नहीं है लेकिन हर एक कविता के पीछे एक कहानी है और उस कहानी के क़िरदार हमारी इसी दुनिया के लोग हैं, यह कविताएं राजनीति पर कटाक्ष करती हैं तो राजनेताओं से सवाल करती हैं, गरीब और मजबूर लोगों का दर्द बयां करती हैं तो बाल मज़दूरी के ज़ुल्म को भी दर्शाती है, यह समाज को आइना दिखती हैं तो कोख में दम तोड़ती बेटियों की चीखे सुनाती हैं, माइग्रेंट मज़दूरों के पलायन के ग़म कहती हैं, यह आतंकवाद पर बदुआए देती हैं तो बढ़ते हुए धार्मिन उन्माद को मुहब्बत और एकता का पैग़ाम भी देती हैं.
यह किसी भी व्यक्ति विशेष पर निशाना नहीं साधती, लेकिन उन किरदारों से सवाल करती हैं जो समाज में कही न कही किसी न किसी रूप में मौजूद हम सब हैं.
इस क़िताब का मक़सद महज़ मरोरंजन करना नहीं है, लेकिन एक छोटी सी कोशिश है उन सभी मुहब्बत, हमदर्दी और एकता के ख़ुशनुमा जज़्बात को जगाने की जो जाने अनजाने हमारे अंदर कही गहरी नींद सो चुके हैं या फिर सब कुछ देख कर भी खामोश है.
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